घोर प्रवृत्ति के बीच भी ज्ञानी भीतर से राग-द्वेष से रहित अपनी सच्चिदानंदघन ब्रम्ह स्थिति से दृढ़ होते है ।  – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू